दोस्तों, छठ पूजा का नाम आते ही मन में एक जिज्ञासा उत्पन्न होती है, की यह क्या है और छठ क्यों मनाया जाता है ?
आइए आज हम इस व्रत का इतिहास, इसकी महत्ता, व्रत की विधि, नियमों के बारे में जानेंगे !
छठ पूजा क्यों मनाई जाती है ?
छठ पर्व मूलत: उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड के निवासियों द्वारा मनाया जाता है! चार दिनों तक चलने वाली छठ पूजा से लोगों की पवित्र आस्था जुड़ी है! इस त्यौहार को लोग बढ़ी श्रृद्धा से हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं
जानिए कब है छठ 2023 में
- नहाय खायए – 17 नवंबर 2023
- खरना – 18 नवंबर 2023
- अस्तगामी सूर्य को अर्घ्य – 19 नवंबर 2023
- उदयीमान सूर्य को अर्घ्य – 20 नवंबर 2023
छठ पूजा क्यों मनाई जाती है एवं इसका क्या पौराणिक इतिहास है ?

छठ पूजा का इतिहास अत्यंत सघन है छठ पूजा के संबंध में कई कथाएं प्रचलित हैं ऐसा कहा जाता है की सतयुग में गंगा नदी के किनारे मुंगेर में माता सीता ने इस व्रत को धारण किया था तदुपरांत छठ पूजा की शुरुआत हुई। द्वापर युग में पांडवों का राज पाठ हार जाने के बाद श्री कृष्ण की सम्मति से द्रोपदी ने छठ पूजा कर व्रत का पालन किया ऐसी भी मान्यता है। वहीं एक किवंदती के अनुसार,प्रियवद नामक राजा ने पुत्र की इच्छा से इस व्रत का आवाहन किया था
छठ पूजा क्यों मनाई जाती है और इसका क्या महत्व है?
छठ पर्व भारतीयों की अटूट श्रद्धा और अडिग विश्वास का प्रतीक है। छठ महापर्व की महिमा अवर्णनीय है नवदुर्गाओं में छठे स्थान की माता कात्यायनी को छठ माता का स्वरूप माना गया है माता कात्यायनी के सूर्य देव की बहन होने के कारण इस दिन सूर्य देवता का भी पूजन अर्चन कर अर्घ्य दिया जाता है इस दिन सूर्य देवता को जल मात्र देने से व्यक्ति की सभी इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं तथा छठ व्रत कर पूजन करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है राजा प्रियवद की तरह, छठ माता के व्रत करने से सुहागिन स्त्रियों को पुत्र की प्राप्ति होती है माता कात्यायनी आरोग्य एवं वैभव को प्रदान करने वाली हैं यह व्रत करने से व्यक्ति के समस्त मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं।
छठ पूजा क्यों मनाई जाती है एवं छठ व्रत की विधि क्या है ?
छठ व्रत वर्ष में दो बार किया जाता है परंतु कार्तिक मास में दीपावली के बाद आने वाले छठ पूजा का विशेष महत्व है यह व्रत कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से आरंभ होता है तथा सप्तमी को सम्पन्न होता है 36 घंटों तक होने के कारण इस व्रत को कठोर तप भी कहा जाता है स्त्री एवं पुरुष दोनों ही इस व्रत को धारण कर सकते हैं कार्तिक मास की षष्ठी तिथि होने के कारण इसे छठ पूजा की संज्ञा दी गई है यहां पूजा चार दिवसों में विभक्त है जिनका अपना-अपना महत्व है –
- नहाय खाय – कार्तिक मास की चतुर्थी अर्थात व्रत के प्रथम दिन को नहाए खाए कहा गया है इस दिन सर्वप्रथम घर की साफ सफाई कर शुद्धि की जाती है उसके बाद व्रत धारण करने वाले व्यक्ति को गंगा अथवा निकटतम सहायक नदी, तालाब अथवा पोखर में जाकर स्नान करना होता है इस दिन नाखूनों को काटकर, केशों को धुल कर समस्त अशुद्धियों का त्याग करते हैं फिर वहीं से जल लेकर घर वापस आते हैं इसी जल के प्रयोग से भोजन निर्मित होता है व्रत धारी इस दिन केवल एक ही बार भोजन ग्रहण करता है मिट्टी के चूल्हे पर पके हुए कद्दू मूंग चना दाल एवं चावल का भोजन ही खाया जाता है तला हुआ एवं तामसिक भोजन इस व्रत में पूर्णतया वर्जित है ।
- खरना – व्रत के दूसरे दिन को यानि कार्तिक मास की पंचमी खरना कहलाती है कहीं कहीं इसे लोहंडा भी कहते है इस दिन व्रतधारी को सूर्यास्त तक निर्जल व्रत करना होता है शाम को चावल गुड़ एवं गन्ने के रस द्वारा निर्मित एक विशेष प्रकार की खीर बनाई जाती है इसी से सूर्य देवता को नैवेद्य अर्पित कर व्रत धारी ग्रहण करते हैं इस खीर रोटी को वितरित करते है यह विधि ही खरना कहलाती हैं मिश्री एवं चीनी का उपयोग अमान्य है।
- संध्या अर्घ्य – कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को छठ माता की पूजा होती है व्रत के चारों दिवसों में इस तीसरे दिन का सर्वाधिक महत्व होता है यह दिवस पूजा का केंद्र एवं मुख्य भाग है संध्या पूजन हेतु गेहूं के आटे और गुड़ का स्वादिष्ट व्यंजन ठेकुआ निर्मित किया जाता है कचवनिया अर्थात चावल के लड्डूओं का भी विशेष स्थान है पूजा का सारी सामग्री,गन्ने (ऊख), नारियल,मेवे ,हल्दी, कुसही केराव के दाने,पांच तरीके के फल तथा अन्य मिष्ठान को, बांस की टोकरी (जिसे दउरा कहते हैं) में रखते हैं घर का पुरुष धूल मिट्टी से बचाने के लिए दउरा को सिर पर रख कर नंगे पांव छठ पूजा के लिए घाट पर ले जाता है और महिलाएं मधुर आवाज में छठ का गीत गाती हुई पीछे पीछे नंगे पांव चलती है उनके सुरों की मिठास पूरे रास्ते में घुल जाती है –
“काँच ही बाँस के बहँगिया, बहँगी लचकति जाए… बात जे पुछेले बटोहिया बहँगी केकरा के जाए,
तू त आन्हर हउवे रे बटोहिया,
बहँगी छठी माई के जाए… बहँगी छठी माई के जाए.”
सूर्यास्त से पूर्व घाट पर पहुंचकर नदी की मिट्टी से छठ माता का चौरा बनाते है उस के चारो तरफ ईख लगाते है और ऊपर से किसी कपड़े से ढक देते हैं इसे ही छठी देवी का स्वरूप मानकर सारी पूजन सामग्री चढ़ाते हैं और गाते हैं,
“सेविले चरन तोहार हे छठी मइया। महिमा तोहर अपार।”
फिर चौरा को दीप जलाकर दीप मालिकाओं से सजाते हैं तदुपरांत समस्त पूजन सामग्री को अन्न साफ करने वाले सूप (सुफली) में रख कर महिलाएं एवं पुरुष नदी के पैर के घुटने तक जल में प्रवेश करते हैं और पूजन हेतु सूर्यास्त होने की प्रतीक्षा करते है और सूर्य देवता के अस्त होने पर सूरज को अर्घ्य देते है और पांच बार खड़े खड़े परिक्रमा करते हैं
पूजन में सभी सामग्रियों को अर्पित किया जाता है कुसही केराव के दानों को केवल दउरा में रख कर लाते है इन्हे संध्या अर्घ्य में नहीं अर्पित करते इनको अगले दिन के उषा अर्घ के लिए सुरक्षित रख देते है कुछ लोग घाट पर रात भर रुकते है तथा अन्य छठ के गीतों को गाते हुए वापस आ जाते हैं और व्रत का पालन करते हैं।
. उषा अर्घ्य – व्रत के अंतिम दिन (कार्तिक मास सप्तमी तिथि) को उषा अर्घ्य कहते हैं उगते सूर्य को अर्घ्य देने हेतु लोग प्रातः सूर्योदय से पूर्व घाट पर पहुंच जाते हैं चौरा पर से संध्या अर्घ्य के व्यंजनों को हटाकर ताजा पकवान अर्पित करते है फलों और कंद मूलों को नहीं बदलते और उसके बाद व्रतधारी पूर्व दिशा की ओर उन्मुख हो कर नदी के जल में फिर से खड़े हो जाते हैं व सूर्य की उपासना करते है महिलाओं अपने मधुर स्वर में गीत गाते हुए सूर्य देवता से शीघ्र उगने की प्रार्थना करती है –
उगु न सुरुज देव भइलो अरग के बेर।
निंदिया के मातल सुरुज अँखियो न खोले हे।
उसके बाद उगते सूरज को अर्घ्य देने के पश्चात घाट पर पूजन करते है अपने बनाए चौरा के अतिरिक्त अन्य बनाए चौराओं पर भी शीश नवाते हैं घर पर आ कर सभी के प्रसाद वितरित करते है इसके बाद पीपल के पेड़ पर जाकर पूजा करते है दीप प्रज्ज्वलित करते है तदुपरांत कच्चे दूध के शर्बत एवं प्रसाद ग्रहण कर व्रत को पूर्ण करते है इसे पारण कहा जाता है ।
छठ पूजा क्यों मनाई जाती है इसके क्या नियम है ?
छठ पूजा चार दिवसीय व्रत है भले ही इसमें भक्ति भाव की प्रधानता है परन्तु इस व्रत के कुछ नियम भी है
- व्रतधारी को 36 घंटे का निर्जला उपवास करना होता है।
- व्रतधारी को प्रथम दो दिवसों में आहार ही मान्य है।
- व्रत धारी को ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है।
- नमक एवं शक्कर या मिश्री दोनों व्रत में अमान्य है।
- तला हुआ अथवा तामसिक भोजन (मांसाहार) पूर्णतया वर्जित है ।
- व्रतधारी को बिस्तर त्याग कर भूमि पर शयन करना होता है।
- परिवार में किसी व्यक्ति की मृत्यु होने की दशा में छठ पूजन नहीं करना चाहिए ।
- रजस्वला (माहवारी के दौरान) स्त्री को छठ पूजन मना है।
- व्रतधारी को मन, वचन एवम् कर्म से शुद्ध रहना चाहिए।
आशा करता हूं कि आपको छठ पूजा कैसे करे और छठ पूजा के संबंध में समस्त जानकारी मिल गई होगी भूलवश हुई किसी त्रुटि के लिए क्षमाप्रार्थी हु ।
और भी बेहतर करने के लिए आपके परामर्श एवं सुझावों का हमें इंतेज़ार रहेगा